🚩 आनन्द वचनामृतम  🚩

इस प्रकार जो उच्च स्तर के भक्त हैं वे परमपुरुष से कुछ भी मांग नहीं करेंगे । वे कहेंगे,  ' हे ईश्वर  ! जो ठीक समझो वही करो । मैं केवल यह चाहता हूँ कि मेरे कार्य ऐसे हों जिनसे तुम्हें आनन्द मिले और उन कार्यों को करके मुझे भी आनन्द मिले । इस कारण ही यह कार्य कर रहा हूँ,  तुम्हें सन्तुष्ट करके मैं भी आनन्द पाऊंगा इसलिए कार्य कर रहा हूँ और कोई भी स्वार्थ नहीं ।' इसे कहते हैं रागानुगा भक्ति । अर्थात  'कुछ नहीं चाहता,  केवल चाहता हूँ कि तुम्हारा काम करता रहूं । तुम्हारा काम कर,  तुमसे प्यार कर,  तुम्हारा मनोरंजन करके आनन्द पाना चाहता हूँ ।

श्री श्रीआनन्द मूर्ति जी ।

' आनन्द बचनामृतम् ' "ये यथा मां प्रपद्धन्ते " -पृष्ठ - 51, चतुर्थ, पंचम और षष्ठ खण्ड ।

🙏🌹🌹🙏

🌻बाबा नाम केवलम ।🌻

Commenti

Post più popolari